1). राष्ट्रीय भाव धारा के प्रमुख कवि
रामधारी सिंह की कविताओं में राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी भरी है। उनकी कविताओं को पढ़कर सहज मानव के हृदय में भी राष्ट्र के लिए कुछ कर लुटाने का भाव उमड़ पड़ता है और पराधीन भारत के कवि होने के नाते यह स्वाभाविक भी था। उस दौर के लगभग सभी कवियों या कवयित्रियों की रचनाओं में राष्ट्रीयता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है किंतु इन सभी रचनाकारों से दिनकर इस मामले में थोड़े भिन्न है। एक तरफ जहां राष्ट्रवाद बड़ी संयम के साथ मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी आदि की रचनाओं में आता था तो वहीं दूसरी ओर थोड़े और
पूछेगा बूढ़ा विधाता तो मैं कहूँगा,