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LinkedIn Twitter घने अन्धकार में खुलती खिड़की: ईरानी स्त्रियों के लोकतांत्रिक संघर्ष की दास्तां फोटो क्रेडिट: अरुण इन दिनों मेरी किताब है लेखक अनुवादक यादवेन्द्र की घने अन्धकार में खुलती खिड़की। इसी वर्ष सेतु से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक ईरान में महिलाओं के अधिकारों के हनन के विरोध में लगातार उठतीं आवाजों का एक संकलन है। वैसी आवाजें जो संस्मरण, चिट्ठियां, सिनेमा, कहानियां, कविताएं एवं ब्लाग्स के माध्यम से महिलाओं ने व्यक्त किया है। ईरान की महिलाएं अपने हक़, अपनी आज़ादी के लिए लम्बे समय से संघर्षरत रहीं हैं

उनके शौहर की कविता का शुरुआती अंश ———————————————– निशान लगा ख़ज़ाना फाटक से आठ क़दम दूर और दीवार से सोलह क़दम के फासले पर… है किसी पोथी का लिखा ऐसे किसी ख़ज़ाने के बारे में? ओ मिट्टी! काश मेरी अंगुलियां छू पातीं तुम्हारी धड़कनें या गढ़ पातीं तुमसे बरतन… अफसोस मैं हकीम नहीं हूं और न ही हूं कोई कुम्हार मैं तो मामूली सा एक वारिस हूं लुटाए-गवाएं हुए अपना सब कुछ… दर-दर भटक रहा हूं तलाश में कि शायद कहीं दिख जाए वो निशान लगा हुआ ख़ज़ाना ———– इज़्ज़त ताबियां की मृत्यु के बाद उनके पति माज़िद नफ़ीसी 1983 में घोड़े प