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  पृथ्वी, पत्थर, दुख और गीत (1) अपने अंदर कितना दुख समेटे यह धरती घूमती रहती है उसी पर खिलते हैं फूल उसी पर उगती…

*जापानी…और हिन्दुस्तानी चूहे ‘छुक्-छुक्’ कर पुरानी ट्रेनें जब चला करती थीं, वह ज़माना बीत गया। अब वे ‘त कि त धूम् -च कि त धूम्……

मैंने ऑनलाईन पत्रिका शुरु करने की चर्चा किसी से नहीं की। मुझे ही क्या पता था? छ:-सात रोज पहले, सुबह आँखें खुलते ही मन में…

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